Tuesday 23 January 2018

बाल-अपराध , कारण एवं निवारण

बच्चे अपने माता-पिता के लिए उनकी उम्मीद के साथ ही उनके माता-पिता के ही समान होते हैं अतः माता-पिता के समान ही ये बच्चों की भी जिम्मेदारी होती है कि वो अपने भविष्य के निर्माण के सर्वश्रेष्ठ विकल्प- आकांक्षाओं के चयन में अपनी इच्छा स्वयं चुन कर उज्जवल भविष्य का निर्माण करने में अपने माता-पिता की मदद लेते रहें और उनके माता-पिता सदैव अपने जिम्मेदारी के निर्वाह में सहयोगी की भूमिका में चूकने न पाएं बल्कि अव्वल ही रहें|
  वर्तमान में बच्चों और माता-पिता के रिश्तों में दूरी जिस प्रकार बढ़ रही है उससे प्रायः देखा जाता है कि बच्चों में अनदेखी करने या कहा जाए कि लापरवाही की भावना पनपती जा रही है जिसका परिणाम यह होता है कि बच्चे अपने सम्माननीय माता-पिता की बात नहीं करते और न तो माता-पिता ही अपने बच्चों से बात करने का समय निकाल पाते हैं फलस्वरूप बच्चों का स्कूल में प्रदर्शन ख़राब होने लगता है, ऐसे में बच्चे कुंठा का शिकार होकर मानसिक रूप से नियंत्रण से बाहर होने लगते हैं |
   प्रत्येक माता-पिता अपने बच्चों का भविष्य उज्जवल होता हुआ ही देखना चाहते हैं तो ऐसे में उन्हें इन समस्याओं को लेकर अधिक चिंता करने की भी ज़रूरत नहीं होती क्योंकि हर समस्या का समाधान भी होता है|
   मानसिक अस्वस्थ होना सिर्फ़ बच्चों की ही नहीं बल्कि बड़ों की भी गंभीर समस्या है जो कि अपराध की पृष्ठभूमि बनाने में सहायक सिद्ध होती है और इसके लिए मानव समाज में व्याप्त व्यवस्था और सुरक्षा को निरंतर बनाये रखने में उस समाज की परिस्थितियों के साथ ही परम्पराओं का भी महत्व होता है, विभिन्न विधान के आधार पर अनेक प्रकार के नियम-कानून बना दिये जाते हैं जिनका उल्लंघन करने वाला ही अपराधी कहा जाता है |  
  अपराध वह कार्य है जिसके लिये राज्य को ये अधिकार होता है कि वो दंडित कर सके , इसी प्रकार बाल अपराध भी सभ्य समाज के उज्जवल भविष्य के लिए एक चिंताजनक विषय है | भारतीय विधान धारा -83 के अनुसार 12 वर्ष से कम आयु के नासमझ बच्चे अपराधी नहीं माने जा सकते हैं, जुनेवाईल जस्टिस एक्ट 1986 के अनुसार बाल/किशोर अपराधी की अधिकतम आयु 16 वर्ष होती है, इसी क्रम में बाल अपराध के उदाहरण में --- चोरी,झगड़ा, मारपीट,मद्यपान,यौन अपराध, आत्महत्या, हत्या, धोखा, बेईमानी, जालसाजी,आवारागर्दी, तोड़-फोड़ एवं छेड़खानी आदि होते हैं|
   बाल-अपराध पनपने के कई कारण हो सकते हैं जिन्हें मानव-समाज बखूबी समझ सकता है क्योंकि दूसरों को उलझाना और अपना स्वार्थ पूरा करना तो आज कल मानव समाज की संस्कृति में शामिल होता ही दिखाई देता है|
  बाल अपराध की रोकथाम के लिए परिक्षण काल/प्रोबेशन में रखना,सुधार-विद्यालय/सुधार-गृह, कारावास आदि के साथ ही परिवार की भूमिका में घर का वातावरण सही-स्वस्थ होना, बच्चों की उचित मांग और जेबखर्च पर नियंत्रण, सही मार्गदर्शन देना तथा विद्यालय स्तर पर योग्य शिक्षकों का सान्निध्य, प्रेम-सहानुभूति, उत्तम वातावरण, स्वतंत्रता-अनुशासन-सुविधा, पुस्तकालय और पूरा ध्यान देना चाहिए होता है|
     इसी के साथ समाज एवं राज्य की भूमिका में बच्चों को राजनीतिक माहौल से दूर रखना, स्वस्थ मनोरंजन, बालश्रम पर रोकथाम तथा स्वस्थ-स्वच्छ वातावरण का निर्माण करना होता है| मनोवैज्ञानिकों के विश्लेषण में यह स्पष्ट होता है कि वयसंधि काल में समाज विरोधी व्यवहार पाया जाता है जो कि 11 से 12 वर्ष की अवस्था से शुरू होकर 13 से 14 वर्ष की आयु में चरम सीमा पर होता है | समाज विरोधी व्यवहार से तात्पर्य यह है कि दूसरे लोगों के प्रति अरुचि होना, संगठित व्यवहार का विरोध, अन्य किसी की इच्छाओं- आशाओं के विपरीत कार्य करना और दूसरों के दुःख में आनंदित होना आदि होता है|
    ऐसी सभी समस्याओं के निवारण के लिए कृत्रिम निद्रा, तंत्र-मंत्र-प्रार्थना जिसका दूसरा नाम वशीकरण या हिप्नोटिज्म जैसी प्रक्रिया का प्रयोग किया जाता है किंतु सबसे उत्तम उपाय तो यही होता है कि माता-पिता स्वयं अनुशासन में रहकर अपने बच्चों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों और कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य के निर्माण में उनके मार्गदर्शन के लिए मददगार साबित होकर स्वस्थ परिवार और स्वस्थ समाज के लिए हमेशा प्रयास करते रहें |
------ निरुपमा मिश्रा त्रिवेदी ( नीरु )

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