मन के बोल पर जब जिंदगी गहरे भाव संजोती है, विह्वल होकर लेखनी कहीं कोई संवेदना पिरोती है, तुम भी आ जाना इसी गुलशन में खुशियों को सजाना है मुझे, अभी तो अपनेआप को तुझमें पाना है मुझे
गुनगुनाये रागिनी जैसे, तुम अमावस की रात में
खिखिलाये फूल जैसे,तुम खुशबुओं की बरसात में
अमरबेल-सा प्रेम अपना, रहेगा हरदम सदियों तक
जगमगाये दीपक जैसे, तुम मन-आँगन-बारात में ---- नीरु ( निरुपमा मिश्रा त्रिवेदी)
Post a Comment
No comments:
Post a Comment