भर दे
मन की पिचकारी
भारत माँ
दुलारी,
तीन रंग में
होती
होली,
विश्व गुरु
बनकर लहराये
तिरंगा - हिंदुस्तान
देश के लिए
तन मन धन
सब
हो जाये
कुर्बान
----- निरुपमा मिश्रा
मन के बोल पर जब जिंदगी गहरे भाव संजोती है, विह्वल होकर लेखनी कहीं कोई संवेदना पिरोती है, तुम भी आ जाना इसी गुलशन में खुशियों को सजाना है मुझे, अभी तो अपनेआप को तुझमें पाना है मुझे
Wednesday 23 March 2016
रंग दे बसंती चोला
Tuesday 22 March 2016
होली
चहक उठी है सृष्टि सलोनी मोहक सिर पर ताज़
महकती हवा के पंख लगाकर मन तो झूमें आज
आज देखकर मनमोहन को ये नयन शरमाये
मन के द्वार पर मुस्काये सजना बावरे आज
----- निरुपमा मिश्रा
Tuesday 8 March 2016
स्त्री - धर्म
स्त्री
जीवन को धारण
पालन- पोषण करती,
धर्म
जीवन जीने की
अनुशासित - प्रेरक
जीवन शैली,
स्वीकार होते दोनों आसानी से,
तर्क- कुतर्क से परे
जिन्हें अपनाया जाता रहा,
फिर क्यों
कुंठित होते अनियंत्रित
जीवन को देखकर
मन घबराता रहा,
स्त्री धर्म तो हर कोई बताता रहा,
पुरुष अपना धर्म निभाने से क्यों
कतराता रहा,
स्त्री अपनी कोख में
जीवन को धारण करती,
अपने जीवन में
सबके वर्चस्व को
स्वीकार करती ,
घर, परिवार, संसार
के बीच अनगिनत
जिम्मेदारियों को
सरलता से अपनाती,
फिर किस धर्म- अधर्म
की परिभाषा में स्वयं स्त्री ही
खुद को
इंसान समझने- समझाने
का धर्म भूल जाती,
धर्म
तो इंसानियत का ही
दुनिया में है रह जाना,
स्त्री - पुरुष
सबको होगा साथ -साथ
आगे आना
कि
बहुत जरूरी
धर्म
इंसानियत का निभाना
------ नीरु 'निरुपमा मिश्रा त्रिवेदी'