Monday 5 October 2015

कलियाँ

खुशबुओं से भिगोने अपने चमन को कलियाँ
छोड़कर जाती ये अपने बाबुल की गलियाँ
धान के पौधे सा कोमल है इनका वजूद
छलावों की धूप में स्वार्थ बरसाये दुनियाँ
----- निरुपमा मिश्रा

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