थामकर भरोसा नन्हे कोमल हाथों से
वो इठलाता हुआ बचपन
अनुभवी कंधों पर बैठकर देखता
पूछ लेता बीच बीच में
कैसी है दुनिया,
बता देता यूं ही अनुभव
कि तेरे-मेरे जैसी ये दुनिया
और शब्दों के पीछे बिखरे पन्नों में
समय की स्याही के रंग देखने लगता,
कोमल रंगों को पक्का होने तलक
कितने रंग देखने होंगे,
बचपन से बुढ़ापे के बीच
उम्र की नादानियां भूल जाती
अपनी ताकत की दिशायें- सीमायें
ख्वाबों-हकीकतों के साथ
जब उम्र की आँखों पर चढ़ने लगते
अनुभव के चश्में तब
तस्वीरों के रंग समझ में आते,
बचपन के सवाल सुनती
युवा दिल की उलझनें देखती
अपने भी कितने सवालों- उलझनों के
हल खोजती
वो
अनुभवी उम्र
---- नीरु 'निरुपमा मिश्रा त्रिवेदी'
मन के बोल पर जब जिंदगी गहरे भाव संजोती है, विह्वल होकर लेखनी कहीं कोई संवेदना पिरोती है, तुम भी आ जाना इसी गुलशन में खुशियों को सजाना है मुझे, अभी तो अपनेआप को तुझमें पाना है मुझे
Friday 25 September 2015
उम्र
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