Friday 25 September 2015

उम्र

थामकर भरोसा नन्हे कोमल हाथों से
वो इठलाता हुआ बचपन
अनुभवी कंधों पर बैठकर देखता
पूछ लेता बीच बीच में
कैसी है दुनिया,
बता देता यूं ही अनुभव
कि तेरे-मेरे जैसी ये दुनिया
और शब्दों के पीछे बिखरे पन्नों में
समय की स्याही के रंग देखने लगता,
कोमल रंगों को पक्का होने तलक
कितने रंग देखने होंगे,
बचपन से बुढ़ापे के बीच
उम्र की नादानियां भूल जाती
अपनी ताकत की दिशायें- सीमायें
ख्वाबों-हकीकतों के साथ
जब उम्र की आँखों पर चढ़ने लगते
अनुभव के चश्में तब
तस्वीरों के रंग समझ में आते,
बचपन के सवाल सुनती
युवा दिल की उलझनें देखती
अपने भी कितने सवालों- उलझनों के
हल खोजती
वो
अनुभवी उम्र
---- नीरु 'निरुपमा मिश्रा त्रिवेदी'

Sunday 6 September 2015

आनलाइन फार्म

लम्बी-लम्बी कतारों में
मुरझा जाते चेहरे
इंतजार करते-करते,
आनलाइन दर्ज
होनी थी बेरोजगारी की टीस,
चालीस-छियालीस
जगहों के लिए
पाँच-छह लाख से
ऊपर जाती संख्याओं
में खुद को दर्ज
कराते उंगलियां
थरथराती,
काफी जद्दोजहद के बाद
जरूरतों को आनलाइन
फार्म में दर्ज करने की खुशी
आँखों में नये सपने
सजाने को सजग
हो जाती धीरे-धीरे,
तारीखों के साथ
बीतते समय में इंतजार
करते -करते
धुंधली चमक
और फीके चेहरे  लिये
फिर से लगती
लम्बी कतार
आनलाइन फार्म
भरने के लिए \
------ नीरु 'निरुपमा मिश्रा त्रिवेदी'