मन के बोल पर
जब जिंदगी
गहरे भाव संजोती है,
विह्वल होकर लेखनी
कहीं कोई
संवेदना पिरोती है,
तुम भी आ जाना
इसी गुलशन में
खुशियों को सजाना
है मुझे,
अभी तो अपनेआप को
तुझमें
पाना है मुझे
Thursday 20 August 2015
चेहरे
नकाबों में छुपे हैं चेहरे कितने
झूठे थे ख्वाब जो, वो सुनहरे कितने
निगाहें भी निगेहबां भी हमारे वो
दिखाये अक्स जो, वो दोहरे कितने
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