मन के बोल पर
जब जिंदगी
गहरे भाव संजोती है,
विह्वल होकर लेखनी
कहीं कोई
संवेदना पिरोती है,
तुम भी आ जाना
इसी गुलशन में
खुशियों को सजाना
है मुझे,
अभी तो अपनेआप को
तुझमें
पाना है मुझे
Saturday 15 August 2015
देश
देश के लिए भी तो मशविरा करिये
कुर्बान अपनी जिस्म-ओ-जां करिये
अंधेरा न हो रास्तों पर कभी भी
हो सके तो चिराग़ -सा जला करिये
---- निरुपमा मिश्रा " नीरू"
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