Saturday 25 July 2015

मैं हूँ मुझमें

मैं कभी
अपने से अलग तो नही,
डरती अपने को खोने से
कहीं,
जीवन की चौखट पर रहे
सुख-दुःख मेहमान सदा,
सीखी है मैंने
जिंदगी
हँसकर जीने की अदा,
आँखों में मेरे संजोती 
आशायें
रोशनी
दर्द में भी होंठों पर हँसी,
बिखराव में सबको समेटते
अगर कभी मैं 
अंधेरों में भटकती 
तो मेरी आस्थायें मुझे खुद से

मिलातीं

मेरे संस्कार जीवंत रखते 

मेरे जीवन- अस्तित्व को,
बहुत अच्छा  कि मैं
कहीं खोई नहीं,
मिल ही जाती 
आसानी से
मैं हूँ शाश्वत
मुझमें
------- नीरु 'निरुपमा मिश्रा त्रिवेदी'

No comments: